पटना. बिहार में पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) के मद्देनजर 20 जनवरी से बूथों का सत्यापन किया जा रहा है. बूथों के सत्यापन के बाद गुरुवार (28 जनवरी) को बूथों के प्रारूप का प्रकाशन किए जाने की संभावना है. निर्वाचन आयोग (Election Commission) से मिली जानकारी के अनुसार 700 मतदाताओं पर एक बूथ का गठन किया जाना है. इस तरह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने के लिए राज्य भर में करीब एक लाख 20 हजार बूथ स्थापित किये जाने हैं. निर्वाचन आयोग के निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 19 फरवरी को अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन कर दिया जाएगा.
मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के बाद इसकी बिक्री का काम आरंभ हो जाएगा. किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से पंचायत चुनाव लड़नेवाले प्रत्याशी को भुगतान के बाद अधिकतम पांच कॉपी ही खरीदने की अनुमति मिलेगी. प्रत्याशियों को प्रति पेज दो रूपये की दर से भुगतान करना होगा. इस बीच बिहार भाजपा ने वर्ष 2020 में बने मतदाता सूची को अविलम्ब समाप्त करने की मांग की है. साथ ही कहा है कि 2008 में हुए नये परिसीमन के आधार पर बूथ तय किये जाएं.
भाजपा की मांग है कि बीएलओ और बीएलए की संयुक्त बैठक हो और टोला/मुहल्ला एवं गृह संख्या इंगित की जाए. मतदाताओं को उनके घर के पास स्थित मतदान केन्द्र से जोड़ा जाए. इसी सिलसिले में बुधवार को बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से मुलाकात कर राज्य में नई मतदाता सूची, मतदान केन्द्र युक्तिकरण, फोटो पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने एवं विभक्त हुई मतदाता सूची में एक ही परिवार के नाम दो विभिन्न मतदान केन्द्र पर होने के कारण मतदान में दिक्कतों लेकर ज्ञापन सौंपा.
ज्ञापन में कहा गया है कि बिहार में मतदाता सूची का गहण पुनरीक्षण का कार्य अक्टूबर 2002 में हुआ और उसी समय केन्द्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा दिये निर्देश के अनुसार मतदान केन्द्र की वार्ड/पंचायत के आधार पर चौहद्दी बनी। उसी के आधार पर बीएलओ ने घर-घर जाकर मतदाता का नाम मतदाता सूची में दर्ज किया. बिहार में 2008 में नया परिसीमन बनाया गया और उसी आधार पर 2009 में लोकसभा और 2010 में विधान सभा का चुनाव हुआ.
भाजपा का कहना है कि नये परिसीमन के बाद कई लोकसभा और विधान सभा क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया और कई नये लोकसभा और विधान सभा क्षेत्र अस्तित्व में आये, लेकिन नए सिरे से मतदाता सूची और फोटो पहचान-पत्र नहीं बनने के कारण मतदाता के पास आज भी पुराने विधान सभा क्षेत्र का फोटो पहचान पत्र है. बिहार में गहन मतदाता पुनरीक्षण हुए 19 वर्ष हो गये है, जिसके कारण आज भी मतदाता सूची में कई ऐसे लोगों के नाम हैं जो या तो मृत हो गये हैं या शिफ्ट हो गए हैं.