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मै एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ मेरा विचार है कि सिर्फ बातें नहीं, काम करना होगा "बेहतर समाज के लिए सबको सोचना होगा"समाज सेवा से बड़ा कोई कार्य नहीं
*रतुल कुमार सोनी की रिपोर्ट*
खगड़िया/ बेलदौर प्रखंड के अंतर्गत बोबिल पंचायत के ऋषव कुमार एक अच्छे समाजसेवी के रूप मे अक्सर देखे जाते है आपको बता दू की एक गांव मे रहने वाले सरल और सह्ज प्रवत्ती के इंसान है इनकी सोंच कुछ ऐसी है जब हमने इनसे मुलाकात की तो बहुत सारी बाते सामने आई क्या विचार भाव रखते है,समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है।
जब आर्थिक और राजनीतिक बदलाव होते हैं तो उसका सीधा असर समाज पर पड़ता है और ऐसे में सामाजिक संरचनाएं टूटती हैं। संरचनाओं के टूटने का असर लोगों की मानसिकता पर गहरा पड़ता है। तय है इससे हर उम्र और हर तबके के लोगों पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन क्या जो सामाजिक बदलाव हो रहा, वो सही है? जिन हालात में हम रह रहे हैं क्या उससे हम संतुष्ट हैं? क्या समाज के हर तबके तक वो सारी चीज़े पहुंच रही हैं जिसकी उन्हें उम्मीद है? इन सारे सवालों से जूझना ज़रूरी है और गंभीरता से सोचना ज़रूरी है। ये सारी चिंता है सामाजिक कार्यकर्ता हू इस लिये मेरा यह विचार है की मै समाज के लिये हमेशा खडा रहा हूँ। सामाजिक बदलाव के लिए शुरूआत करनी होगी किसानों से। किसान जिनकी बदौलत हमें खाना मिलता है। अगर किसान अन्न उपजाना बंद कर दें तो हमारी हालत क्या होगी, इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं। लेकिन कितने लोग उठ कर ये कहते हैं कि मैं किसानों की बेहतरी के लिए काम करना चाहता हूं। पैसे लगाना चाहता हूं। शायद बहुत कम। ऐसे में हमें सिर्फ कहने के लिए काम नहीं करना है। बदलाव के लिए काम करना है।
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समाजसेवी:ऋषव कुमार |
मै एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ मेरा विचार है कि सिर्फ बातें नहीं, काम करना होगा "बेहतर समाज के लिए सबको सोचना होगा"समाज सेवा से बड़ा कोई कार्य नहीं
*रतुल कुमार सोनी की रिपोर्ट*
खगड़िया/ बेलदौर प्रखंड के अंतर्गत बोबिल पंचायत के ऋषव कुमार एक अच्छे समाजसेवी के रूप मे अक्सर देखे जाते है आपको बता दू की एक गांव मे रहने वाले सरल और सह्ज प्रवत्ती के इंसान है इनकी सोंच कुछ ऐसी है जब हमने इनसे मुलाकात की तो बहुत सारी बाते सामने आई क्या विचार भाव रखते है,समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है।
जब आर्थिक और राजनीतिक बदलाव होते हैं तो उसका सीधा असर समाज पर पड़ता है और ऐसे में सामाजिक संरचनाएं टूटती हैं। संरचनाओं के टूटने का असर लोगों की मानसिकता पर गहरा पड़ता है। तय है इससे हर उम्र और हर तबके के लोगों पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन क्या जो सामाजिक बदलाव हो रहा, वो सही है? जिन हालात में हम रह रहे हैं क्या उससे हम संतुष्ट हैं? क्या समाज के हर तबके तक वो सारी चीज़े पहुंच रही हैं जिसकी उन्हें उम्मीद है? इन सारे सवालों से जूझना ज़रूरी है और गंभीरता से सोचना ज़रूरी है। ये सारी चिंता है सामाजिक कार्यकर्ता हू इस लिये मेरा यह विचार है की मै समाज के लिये हमेशा खडा रहा हूँ। सामाजिक बदलाव के लिए शुरूआत करनी होगी किसानों से। किसान जिनकी बदौलत हमें खाना मिलता है। अगर किसान अन्न उपजाना बंद कर दें तो हमारी हालत क्या होगी, इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं। लेकिन कितने लोग उठ कर ये कहते हैं कि मैं किसानों की बेहतरी के लिए काम करना चाहता हूं। पैसे लगाना चाहता हूं। शायद बहुत कम। ऐसे में हमें सिर्फ कहने के लिए काम नहीं करना है। बदलाव के लिए काम करना है।