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मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश दिनेश कुमार सिंह की खण्डपीठ ने गुरुवार को शराबबंदी से जुड़ी जमानत की एक अर्जी पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे याचिका में तब्दील कर दिया। फिर उसकी सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार शराबबंदी कानून की वजह से बढ़ते हुए मुकदमे के प्रति असंवेदनशील है।
पटना। पटना हाईकोर्ट ने राज्य की अदालतों में शराबबंदी से जुड़े मामलों के लगातार बढ़ते बोझ पर चिंता जाहिर करते हुए सख्ती दिखाई है और कहा है कि बहुत समय दे दिया। मुकदमों का अनावश्यक बोझ कोर्ट अब बर्दाश्त नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा है कि 24 घंटे में मुख्य सचिव से पूछकर सारी बातें बताएं।
कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा है कि सरकार इसे कम करने के लिए क्या उपाय कर रही है। इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को भी होगी। कोर्ट ने कहा-'चीफ सेक्रेट्री 24 घंटा में बताएं कि मुकदमों की इस बड़ी बोझ को कम करने के लिए सरकार क्या कर रही है; कौन सी प्रणाली अपनाई है?'
खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा-शराबबंदी कानून से भयंकर स्थिति पैदा हो गयी है। बड़ी तादाद जमानत याचिका दायर है। 90% याचिकाकर्ताओं को जमानत मिल गयी है। यह साफ दर्शाता है कि इस मामले में बड़ी तादाद में निर्दोष लोगों को फंसाया जाता है। खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार बताए कि पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी मामले में लाखों लोगों को जो जमानत दी है, उनमें से कितने आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी है।
अगर राज्य सरकार लाखों लोगों को मिली जमानत के खिलाफ बहुत कम मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील करती है तो हाईकोर्ट यही समझेगा कि राज्य सरकार भी मानती है लाखों निर्दोष नागरिकों को शराबबंदी कानून में फंसाया जा रहा है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने जो कोर्ट को जवाब दिया वह असंतोषजनक है। कोर्ट में दो लाख से अधिक मुकदमे लम्बित हैं और हमारी निचली अदालतों का न्यायिक कामकाज पर असर पड़ने लगा है। सरकार ऐसी कोई प्रणाली क्यों नहीं विकसित की, जिससे शराबबंदी से होने वाले मुकदमों का बोझ कम हो।
इसपर महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार कानून को सख्ती से लागू कर रही है और कानून को तोड़ने वालों के खिलाफ मुकदमा तेजी से बढ़े। इसके लिए ठोस प्रयास कर रही है । पहले की तुलना में मुकदमों की बोझ में कमी आयी है।
इसपर कोर्ट ने कहा कि दो लाख मुकदमों का बोझ सरकार को कम कैसे लगता है? यह तो आपात (इमरजेंसी) स्थिति जैसी है। हमारी निचली अदालतों में अन्य मुकदमों के निस्तारण में बहुत बाधा हो रही है। शराबबंदी के बढ़ते मामलों का जाम लग गया है।
जिसे आप तेजी कहते हैं, वही कोर्ट को विचलित करती है। शराबबंदी कानून से जुड़े दो लाख से भी अधिक जमानत के मामलों में 90 फीसदी आरोपियों को जमानत तक मिल गयी है। हम क्यों नहीं माने कि इतनी बड़ी तादाद में जमानत इसलिए मिल गयी, क्योंकि इसमें ज्यादा निर्दोषों को फंसाया जा रहा है।
इसपर महाधिवक्ता ने कहा कि मुख्य सचिव से बात कर कोर्ट को अवगत कराते हैं। इस मामले को सोमवार के लिए मुल्तवी किया जाए। एक-दो दिन का समय मिलेगा, तो राज्य सरकार की तरफ से कोई एक्शन प्लान भी पेश हो जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि अब बहुत समय दे दिया। मुकदमों का अनावश्यक बोझ कोर्ट बर्दाश्त नहीं करेगा। 24 घंटे में मुख्य सचिव से पूछकर सारी बातें बताएं।