14feb ,2018 @ कोशी क्षेत्रिये समाचार
मधेपुरा। उत्तर बिहार का प्रमुख शिव नगरी ¨सहेश्वर स्थान की प्रसिद्धि रामायण काल से ही रही है। श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध ¨सहेश्वर स्थान को अब बिहारी बाबाधाम भी कहा जाने लगा है। राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने वाले श्रृंगि ऋषि की तपोभूमि के रूप में ¨सहेश्वर स्थान प्रसिद्ध रहा है। श्रृंगि ऋषि की तपोभूमि रहने की वजह से ही इस स्थान का नाम ¨सहेश्वर पड़ा। पहले इस स्थान का नाम श्रृंगेश्वर था जो बाद में ¨सहेश्वर के नाम से प्रचलित हो गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार सदियों पूर्व यह स्थल घना जंगल हुआ करता था। यहां पर श्रृंगि ऋषि तपस्या में लीन रहते थे। राजा दशरथ को पुत्र नहीं होने पर उन्हें श्रृंगि ऋषि द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने का सलाह दिया गया। जिसके बाद राजा दशरथ ने इनसे पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया इसके बाद भगवान राम सहित अन्य पुत्र रत्न की प्राप्ति उन्हें हुई थी। श्रृंगि ऋषि द्वारा कराए गए यज्ञ से राजा दशरथ को पुत्र होने के बाद ¨सहेश्वर स्थान लोग पुत्र प्राप्ति के लिए आशीर्वाद लेने आने लगे।
कामना ¨लग के रूप में है प्रसिद्ध : मंदिर स्थित बाबा ¨सहेश्वर नाथ के ¨लग को कामना ¨लग कहा जाता है। यहां के बारे में स्थापित मान्यता यह है कि संतान की चाह में आने वाले दंपति को बाबा आर्शीवाद अवश्य मिलता है। यही वजह है कि क्षेत्र के अधिकांश श्रद्धालु शादी होने के बाद यहां भोलेनाथ का आशीर्वाद लेकर जीवन की शुरुआत करते हैं।लग्न के मौसम में भी एक-दिन में यहां सैकड़ों शादियां भी संपन्न होती है।यह भी पढ़ें
विष्णु भगवान ने ¨सग रूपी शिव¨लग किया था स्थापित : देवाधिदेव महादेव की नगरी ¨सहेश्वर स्थान एंव मंदिर के बारे में कोई ठोस प्रमाणिक साक्ष्य तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन यहां के इतिहास एवं पौराणिक गाथा के रूप में कई कहानियां प्रचलित है। बाराह पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार भोले शिव हिरण रूप धारण कर धरती पर भ्रमण को चले आए। स्वर्ग लोक में शिव को नहीं देख देवताओं ने उन्हें ढूंढ़ना शुरू कर दिया। इसी क्रम में इन्हें पता चला कि शिव धरती पर हिरण रूप में है। सभी देवता धरती पर आकर हिरण रूपी शिव को ले जाने का प्रयास करने लगे। लेकिन शिव जाने को तैयार नहीं हुए। जबरन ले जाने के लिए देवताओं ने हिरण का ¨सग पकड़ा जिसके बाद शिवरूपी हिरण गायब हो गए और आकाशवाणी हुई कि अब शिव नहीं मिलेंगे। इधर देवताओं के हाथ में ¨सग का टुकड़ा रह गया। ¨सग का अग्र भाग इन्द्रदेव के पास मध्य भाग भगवान ब्रह्मा के पास एवं नीचे के भाग विष्णु भगवान के हाथों में रह गया। प्रचलित गाथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने हाथ आए ¨सग को जहां स्थापित किया वहीं जगह कलान्तर में ¨सहेश्वर कहलाया।